Land Registry Documents : भारत में प्रॉपर्टी खरीदने और बेचने के नियम अब और सख्त कर दिए गए हैं। सरकार ने जमीन से जुड़े धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े को रोकने के लिए भूमि रजिस्ट्री प्रक्रिया में बड़े बदलाव किए हैं। अब बिना पैन कार्ड, आधार कार्ड, सेल एग्रीमेंट, टैक्स रसीदें और पहचान प्रमाण जैसे दस्तावेजों के प्रॉपर्टी रजिस्ट्री संभव नहीं होगी। आइए विस्तार से जानते हैं कि ये नए नियम आपके लिए क्यों ज़रूरी हैं और किन दस्तावेज़ों के बिना ज़मीन-जायदाद का लेन-देन अधूरा रहेगा।
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Land Registry Documents
प्रॉपर्टी रजिस्ट्री में बदलाव क्यों किए गए?
भारत में प्रॉपर्टी और जमीन से जुड़े धोखाधड़ी के मामले लगातार बढ़ रहे थे। कई बार देखा गया कि एक ही प्रॉपर्टी को अलग-अलग लोगों को बेच दिया जाता था या फिर नकली कागजात के सहारे लाखों-करोड़ों का फर्जीवाड़ा किया जाता था। इन हालातों ने आम लोगों को ठगा और परेशान किया।
इन्हीं समस्याओं से निपटने और प्रॉपर्टी मार्केट को पारदर्शी बनाने के लिए सरकार ने रजिस्ट्री प्रक्रिया में बड़े बदलाव किए हैं। अब डिजिटल तकनीक के जरिए पूरी प्रक्रिया सुरक्षित और भ्रष्टाचार-रहित बनाई जा रही है, ताकि खरीदार और विक्रेता दोनों के हित सुरक्षित रह सकें।
पैन कार्ड की अनिवार्यता
नए नियमों के तहत प्रॉपर्टी रजिस्ट्री में पैन कार्ड दिखाना अनिवार्य कर दिया गया है। अब खरीदार और विक्रेता दोनों को अपना पैन कार्ड देना होगा। यह इसलिए ज़रूरी है ताकि हर ट्रांज़ैक्शन का रिकॉर्ड सरकारी सिस्टम में दर्ज हो सके और काले धन के इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक लगाई जा सके।
इसके अलावा पैन कार्ड के साथ पासपोर्ट साइज फोटो भी जमा करनी होगी। इससे लेन-देन में शामिल व्यक्तियों की पहचान साफ और पक्की रहेगी। यदि भविष्य में कोई विवाद होता है, तो यह फोटो और पैन कार्ड दोनों ही सबूत के तौर पर काम करेंगे।
आधार कार्ड अब ज़रूरी
प्रॉपर्टी रजिस्ट्री में आधार कार्ड को पहचान और निवास प्रमाण के रूप में अनिवार्य कर दिया गया है। खरीदार और विक्रेता दोनों को रजिस्ट्री के समय आधार कार्ड देना होगा। आधार में मौजूद बायोमेट्रिक जानकारी नकली पहचान पर रोक लगाती है और सुनिश्चित करती है कि लेन-देन असली व्यक्ति के साथ ही हो रहा है।
इसके साथ ही आधार कार्ड सरकार को संपत्ति मालिकों का सही डेटा उपलब्ध कराता है। इससे भविष्य में टैक्स वसूली, कानूनी प्रक्रिया और प्रशासनिक कार्यों में आसानी होती है। यहां तक कि अगर किसी व्यक्ति के नाम पर कई संपत्तियां हैं, तो उनका पूरा रिकॉर्ड आधार से लिंक होकर एक जगह मिल जाएगा।
सेल एग्रीमेंट की अनिवार्यता
अब खरीदार और विक्रेता के बीच होने वाला सेल एग्रीमेंट रजिस्ट्री के समय दिखाना ज़रूरी हो गया है। इसमें प्रॉपर्टी की कीमत, भुगतान की शर्तें और दोनों पक्षों की जिम्मेदारियां स्पष्ट लिखी जाती हैं। इससे लेन-देन कानूनी और पारदर्शी बनता है।
यदि भविष्य में कोई विवाद होता है, तो यह सेल एग्रीमेंट कोर्ट में सबूत के रूप में काम आता है। यह दस्तावेज खरीदार और विक्रेता दोनों के अधिकारों की रक्षा करता है और किसी भी तरह की गलतफहमी या धोखाधड़ी की संभावना को खत्म करता है।
टैक्स और देनदारी की रसीदें
नई व्यवस्था के तहत यह भी अनिवार्य किया गया है कि अगर संपत्ति पर कोई टैक्स या देनदारी बकाया है तो उसकी रसीदें रजिस्ट्री के समय जमा करनी होंगी। इसका उद्देश्य खरीदार को भविष्य के कानूनी झंझटों से बचाना है।
प्रॉपर्टी टैक्स, भू-राजस्व या अन्य सरकारी शुल्क की रसीदें जमा होने के बाद ही रजिस्ट्री पूरी होगी। इससे खरीदार को भरोसा मिलता है कि जिस प्रॉपर्टी को वह खरीद रहा है, उस पर किसी तरह का बकाया या कानूनी मामला लंबित नहीं है।
डिजिटल प्रक्रिया से सुविधा
सरकार ने भूमि रजिस्ट्री को अब पूरी तरह डिजिटल बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। यानी अब तहसील और रजिस्ट्री कार्यालयों के चक्कर लगाने की ज़रूरत नहीं होगी। खरीदार और विक्रेता अपने दस्तावेज़ ऑनलाइन अपलोड कर पाएंगे और रजिस्ट्री की स्थिति को घर बैठे ट्रैक कर पाएंगे।
डिजिटल सिस्टम से बिचौलियों और भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी। इसके अलावा समय और पैसे दोनों की बचत होगी। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए यह सुविधा बेहद मददगार साबित होगी, क्योंकि उन्हें अब बार-बार सरकारी दफ्तरों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे।
राज्यवार नियमों में अंतर
यह ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है कि प्रॉपर्टी रजिस्ट्री से जुड़े नियम सभी राज्यों में एक जैसे नहीं हैं। कुछ राज्यों में अतिरिक्त दस्तावेज़ भी मांगे जा सकते हैं। इसलिए किसी भी लेन-देन से पहले अपने राज्य के नियमों की जानकारी लेना बेहद आवश्यक है।
इसके अलावा अलग-अलग राज्यों में स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्री शुल्क की दरें भी अलग-अलग हैं। कुछ राज्यों ने ऑनलाइन रजिस्ट्री की सुविधा शुरू कर दी है, जबकि कुछ जगह अभी भी पुराने तरीके से काम होता है। ऐसे में स्थानीय तहसील या राजस्व विभाग से संपर्क करके ही प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए।
खरीदार और विक्रेता की जिम्मेदारियां
नए नियमों के बाद खरीदार और विक्रेता दोनों की जिम्मेदारियां भी बढ़ गई हैं। खरीदार को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह क्लीन प्रॉपर्टी खरीद रहा है और सभी दस्तावेज़ सही हैं। वहीं विक्रेता को भी यह साबित करना होगा कि जिस संपत्ति को वह बेच रहा है, वह पूरी तरह वैध है।
इस व्यवस्था से दोनों पक्ष सुरक्षित रहेंगे और किसी भी तरह के विवाद की संभावना कम हो जाएगी।
फर्जीवाड़े पर लगेगी रोक
अब जब हर दस्तावेज अनिवार्य है और बायोमेट्रिक आधार से जुड़ा हुआ है, तो प्रॉपर्टी धोखाधड़ी करना लगभग नामुमकिन होगा। नकली पहचान, फर्जी कागज़ात और एक ही जमीन को कई बार बेचने जैसे मामले अब रुक जाएंगे।
इससे रियल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता आएगी और आम लोग बिना डर के प्रॉपर्टी में निवेश कर सकेंगे।
भविष्य में और भी बदलाव संभव
सरकार लगातार भूमि रजिस्ट्री प्रणाली को बेहतर बनाने की कोशिश कर रही है। आने वाले समय में और भी नियम लागू किए जा सकते हैं। जैसे कि पूरी तरह ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी पर आधारित रजिस्ट्री, ताकि धोखाधड़ी की कोई गुंजाइश ही न बचे।
इन सुधारों से नागरिकों को सुरक्षित और आसान प्रॉपर्टी लेन-देन की सुविधा मिलेगी और न्यायालयों में प्रॉपर्टी विवादों के मामलों की संख्या भी घटेगी।
निष्कर्ष
सरकार द्वारा लाए गए नए नियम आम नागरिकों की सुरक्षा और पारदर्शिता के लिए बेहद अहम हैं। अब बिना पैन कार्ड, आधार कार्ड, सेल एग्रीमेंट और टैक्स रसीदों के रजिस्ट्री संभव नहीं होगी। इसके साथ ही डिजिटल प्रक्रिया ने लोगों का काम आसान कर दिया है।
हालांकि राज्यवार नियमों में अंतर हो सकता है, इसलिए प्रॉपर्टी खरीदने या बेचने से पहले स्थानीय तहसील या कानूनी सलाहकार से जानकारी लेना बेहद ज़रूरी है। ये बदलाव न सिर्फ धोखाधड़ी पर रोक लगाएंगे बल्कि आम नागरिकों को सुरक्षित और भरोसेमंद लेन-देन की सुविधा देंगे।